अधूरी कवीता

शमां को पीघलते देर नही लगती
आरमां को बीखरते देर नही लगती
अंजाने मैं दूंदते रहे अपने प्यार की लौ को
उस लौ को दील जलाते देर नही लगती
ऐ जख्में-ऐ -दील बाद मुद्दत के
प्यार का चला था सीलसीला
इस सिलसिले को सहर बनते देर नही लगती
अश्कों के समंदर मैं ख्वाबों को डूबते देर नही लगती ...................................

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तन्हाई ना रहना चाहती तन्हा

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