जब कोई वास्ता नही तेरा मुझसे ,
तो फिर आईने को छु कर गुजरता है,
हर घड़ी हर लम्हा क्यों अक्स तेरा
आब भी मेरा पीछा किया करता है ?
क्यों दूर मुझसे जा कर आवाज़
मुझी को दिया करते हो
क्यों यादों की डोरी से
बंधे मुझे चुपके चुपके चोरी से
मेरे सपनों की नगरी मैं
दाखिल तुम हर रोज़ शोर मचाया करते हो ?.......................
तो फिर आईने को छु कर गुजरता है,
हर घड़ी हर लम्हा क्यों अक्स तेरा
आब भी मेरा पीछा किया करता है ?
क्यों दूर मुझसे जा कर आवाज़
मुझी को दिया करते हो
क्यों यादों की डोरी से
बंधे मुझे चुपके चुपके चोरी से
मेरे सपनों की नगरी मैं
दाखिल तुम हर रोज़ शोर मचाया करते हो ?.......................
अच्छी और भावप्रधान रचना |
ReplyDeleteआशा
Dhanyawad asha ji
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