इल्तेज़ा

सोचते हो मेरे बारे मैं जब
आंखें होती है नम क्यों तब
भागते हो क्यों सच्चाई से
छुपा लेते हो क्यों मुझसे
कह तो देते बस एक बार
सोचती हूँ मैं बार बार
जानती हूँ हो नही सकती तुम्हारी
पर देती नही औरों को तुम्हारी बराबरी
रेगीस्तान के मंज़र पे चाहती हूँ प्यार के एक बूँद
चाहती हूँ झलक तुम्हारे प्यार का पाना
न मिल सकूंगी दोबारा कभी
न कह सकूंगी दिल की बात कभी
न जी सकूंगी कभी न मर सकूंगी कभी
बात चली पता अगर दूर कभी
रो भी न पाऊंगी फीर कभी ........................

5 comments:

  1. मंगलवार 30/04/2012को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....

    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद .... !!

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  2. बहुत खूब लिखा आपने | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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